Thursday, February 19, 2009
Gossipice (gossip + spice)
Sunday, February 15, 2009
P.S. to the crow post
Tuesday, February 10, 2009
मेहमान पल भर के
हे मानव ! ज़िन्दगी है छोटी फिर आँख क्यों है रोती ? जन्म से अंत तक कई जगहों में रहते , लेकिन कहीं भी मेहमान पल भर के | माँ का कोख बस नौ महीनों का ढ़ेरा, फिर लगाना कई गोदी का फेरा, वह भी जब तक चल न सको, बढ गए इतने, हाथों में टिक न सको | बचपन का वस्त्र भी रूठ जाता, जब शरीर उसे न अब भाता | प्यारी है खेल क्षेत्र की कलियाँ, मुर्जाये, जब ज़िन्दगी बने पहेलियाँ | माँ का प्यार भी बिछड़ जाए, पिता का भी न रह पाए | मेहमान खुशियों के घर का, जब तक पलटे न सिक्का | पैरों से धरती जब खिसके मेहमान हो शर शय्या के | अरे ! देह के भी मेहमान तुम, जब तक आत्मा हो जाए गुम | चिता पर भी न टिके, उड़ गए, संग आग के | इस छोटी सी ज़िन्दगी का, मुनाफा है लाखों का | फिर क्यों एक दूसरे से लड़ते ? दौतल के लिए मरते ? हे मानव! तुम मेहमान पल भर के |